क्या चाहते हो?!
क्या चाहते हो?!
ये क्या चाहते हो,
ये क्या सोचते हो?
तुम दूर हो गये
तो क्या
तुमको
भुला दूँ?
सब भूल जाऊं
तुमको भुला दूँ ?
ना, ये दिल यूं नहीं सोचता है
तुमसे जुदा हूं ये नहीं मानता है।
ये रवैया नहीं रहा इसका कभी भी
कि हो दूर तुम तो तुम्हें दूर मानू ।
जानता है दिल कि
हो अभी बेहद मशरूफ तुम
दुनिया मे आज जरूरी मसायल तुम्हारे
उनमे मुब्तला दिलो जान से हो तुम
सोचता है ये जरा बरस
कुछ आगे की,
वो बगीचे की शाम
संग बैठने की,
फिसलते चश्मे को
सही करने की,
तेरे हाथों की कसती
पकड़ होने की।
ये क्यँ चाहते हो की
तुम्हे भूल जाऊं
ना तुम्हे याद करूं मैं
न ही पलकें भिगाऊं
सच कह रही हूं
ये सोचता है
कुछ साल आगे की
कि जब तेरे बालों मे हो दिखती
उजले रंग की अमीरी
कि उम्र जब तेरे चेहरेपर
लकीरों मे जाय
और लाठी पकड़ना
जरुरी सा हो जाय
मैं तेरे हमराह तुझसे
मिलती रहूँ मैं
की तुझको मुस्करा कर
देखती रहूँ मैं
पर जब कहते हो
तुम की मुझे भूल जाओ
ना याद आओ
न याद दिलाओ
ये दिल टूटता है
ये दिल सिसकता है
जहन मे रह्ता है
हरदम यही हर्फ
मिलने का तुमसे
रहा होगा कोई अर्थ
कि कभी आस्मानों मे
जो मिले हम
सोचती हूं की क्या
तब भी यूं ही तुम
यही चाहोगे की
न तुमसे मिलूं मै
क्या यही चाहोगे कि
न तुमको मिलूँ मैं
ये क्या चाहते हो,
ये क्या सोचते हो?

