कवयित्री
कवयित्री
कविता तुम जो लिखती हो क्या
अरमानों की भी सुनती हो
भावों को जो लिखती हो
क्या एहसासों को भी समझती हो।
बातें तुम जो कहती हो
क्या उन घातों को भी सहती हो
दर्द तुम जो बयान करती हो
क्या उन लम्हों को भी जीती हो।
हाँ, तुम जो कहती हो वो समझती हो
तुम जो सहती उनको ही लिखती हो
हाँ, वो बातें जो होती घातों सी
तुम उनको भी झेल जाती हो।
दर्द भरे लम्हे ख़ुशी भरे जज़्बे
उन्हें ही तो उकेरती ही काग़ज़ों पे
और कह जाती हो
सदियों से दोहराई गई
बातों में कोई बात नई।