STORYMIRROR

Shehla Jawaid

Abstract

3  

Shehla Jawaid

Abstract

कवयित्री

कवयित्री

1 min
191

कविता तुम जो लिखती हो क्या

अरमानों की भी सुनती हो 

भावों को जो लिखती हो 

क्या एहसासों को भी समझती हो।

 

बातें तुम जो कहती हो 

क्या उन घातों को भी सहती हो

दर्द तुम जो बयान करती हो    

क्या उन लम्हों को भी जीती हो।

 

हाँ, तुम जो कहती हो वो समझती हो

तुम जो सहती उनको ही लिखती हो 

हाँ, वो बातें जो होती घातों सी 

तुम उनको भी झेल जाती हो।

 

दर्द भरे लम्हे ख़ुशी भरे जज़्बे

उन्हें ही तो उकेरती ही काग़ज़ों पे

और कह जाती हो 

सदियों से दोहराई गई 

बातों में कोई बात नई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract