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कविता

कविता

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साँस अभी बाकी है,

मैं जिन्दा हूँ अभी क्योंकि,

थोड़ी साँस अभी बाकी है।


कुछ अधूरे ख्वाब हैं,

चाहत की आस बाकी है।


मै सोचती हूँ क्या,

चाहती हूँ क्या,

किसी को फर्क पड़ता नहीं।


इसका अधिकार मिलेगा मुझे,

इसकी आस बाकी है।


मैं पूछती हूँ उनसे,

क्यों काट दी जाती है मेरी डोर,

जब मैं धरती को छूकर,

आसमां की ओर उड़ती हूँ।


जब फसलों की तरह लहलहाना चाहती हूँ,

तो क्यों रोक दी जाती हूँ मैं,

मैं पूछती हूँ उनसे क्यों ?


कोख में ही मार दी जाती हूँ मैं,

और जन्म ले भी लिया,

तो क्यों ज़मीन में गाड़ दी जाती हूँ मैं ?


नवरात्री में देवी मानकर,

नौ दिनों तक पूजी जाती हूँ मैं,

फिर बाद में क्यों,

उनका शिकार बन जाती हूँ मैं ?


इन सवालों के जवाब की आस बाकी है

क्योंकि अभी थोडी, साँस बाकी है।


सड़कों पर चाहती हूँ चलना,

मदमस्त "दामिनी" की तरह,


पर मेरी चाल रोक दी जाती है,

मेरी "ज्योती" बुझा दी जाती है।


फिर भी जिन्दा हूँ अभी मैं,

न्याय की आस अभी बाकी है।


क्योंकि थोड़ी साँस अभी बाकी है,

थोड़ी साँस अभी बाकी है।।


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