अक्सर
अक्सर
सोचती हूँ अक्सर-
कुछ सपने पूरे हैं
कुछ ख्वाब अधूरे हैं।
कई हसरतें पूरी हैं
तो कहीं
जरूरत भी अधूरी है।
देखो,
कहीं पर प्यार ही
प्यार पलता है।
तो कहीं कोई मासूम
माँ के आँचल को भी
तड़पता है !
देखती हूँ अक्सर-
किसी की बिन माँगी
मुराद भी पूरी है,
तो कहीं किसी की
ममता भी अधूरी है।
किसी की थाली
पकवानों से महकती है
तो कहीं थाली
सुखी रोटी को भी तरसती है !
सुनती हूँ अक्सर-
कहीं धूप है
तो कहीं छाँव है,
कहीं नगर है
तो कहीं गाँव है।
कोई जूतों से लबरेज है,
तो कोई नंगे पाँव है
कहीं ब्रांडेड
जूतों की बौछार है,
तो कोई नंगे पैर
रहने को लाचार है।
देखती हूँ अक्सर-
कोई आधुनिकता के
चीथड़े लपेटा है,
तो कोई चीथड़े
लपेटने को लाचार है।
अजीब आचार है
अजीब विचार है।
बदल गया आहार
तो बदल गया व्यवहार है।।
