कविता
कविता
अब कुछ मकां ही शेष उजालों के नाम पर
कैसा है ये दस्तुर त्योहारों के नाम पर
सामने के झोपड़े में दिया एक भी नही
फ़ानूस थे महल में अमीरी के नाम पर
भूखा गरीब पूजता लक्ष्मी को सुबह शाम
आदम ने खाए सिक्के निवालों के नाम पर
में भी ख़रीद लाया था कुछ खिल बताशे
पूजन में उड़ गए वो गरीबी के नाम पर
दुनिया को समझने में बहुत देर लगेगी
सब छोड़ दे बंदे तू उस ईश्वर के नाम पर।
