कवि की कविता
कवि की कविता
कुछ दिनों से मेरी कविता मुझसे रूठ गई कानों में मीठे बोल बोले अपनी उंगलियों से उनके बालों को सहलाया और उन्हें गुदगुदाया ,पर स्तब्ध मौन निरुतर अपनी पलकों को दोनों हाथों के तले छुपाके अपने रूठने की भंगिमा में लिपट कर प्रतिकार कर रही थी !आखिर उसकी व्यथाओं को भला कौन पढ़ता हैं ? उनकी सिसकियां और करुण क्रंदन को कोप -भवन की दीवारें ही सुनती हैं !नए -नए रस और अलंकारों के परिधानों में सजती है !!चूड़ियों की खनघनाहट और पायलों की धुन की एक अद्भुत संगीत बनती है !
वर्षों बाद कवि अपनी कविता की सुध लेने पहुंचा ,कविता किसी कोने में अपनी सुध -बुध खोयी बैठी है !कवि की भी कल्पना के तार ढीले पड़ गए शब्दों का संसार धूमिल पड़ गया ,शृंगार के कलमों की धार अविरुद्ध हो चली ,हमने अपनी गलतियां मानकर अपने दोनों हाथों को जोड़ कर ,अपनी प्रियतम कविता का अभिनंदन और सम्मान किया !अब मैं अपनी कविता को कहीं छोड़ कर नहीं जाऊंगा और जहाँ जाऊंगा सँग तुम्हें ले जाऊँगा !!सब दिन अपनी कलम से रंग भरूँगा ,रस ,अलंकार के परिधानों से नया रूप दूंगा !कविता कवि का साथ अनोखा एक दूजे के पूरक सदा ही होते हैं कुछ क्षण दूर भले रहते हों पर साथ सदा ही रहते हैं।