कुंडलिया : "सेवा-मेवा"
कुंडलिया : "सेवा-मेवा"
सेवा बिन मेवा नहीं, सोच समझ इंसान।
बड़े बुजुर्गों का करो, मन से आदर मान।
मन से आदर मान, करो हो वारे न्यारे।
बुजुर्ग देव समान, मान ना इनका मारे।
असली के आधार, यही जीवन के खेवा।
सच्चे तीर्थ जान, करो सब मन से सेवा।
