Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Krishna Bansal

Abstract

4.4  

Krishna Bansal

Abstract

कुम्हार कहे माटी से

कुम्हार कहे माटी से

1 min
683


माटी कहे कुम्हार से 

तू क्यों रोंदे मोहे 

एक दिन ऐसा आएगा 

मैं रोंदूगी तोहे।


कबीर का यह दोहा 

कुम्हार ने कई बार सुना था

एक दिन सुनते सुनते उसके मन में

आक्रोश भर आया और उसने माटी

को संबोधित करते हुए

कुछ इस तरह कहा--


कुम्हार कहे माटी से 

तू नाहक गिले-शिकवे करती है 

मैं तुझे कब रोंदता हूं 

मैं तो केवल तुझे गूंधता हूं 

गूंध गूंध कर 

मुलायम कर 

नित नईं शक्ल देता हूं 

अपनी आजीविका कमाता हूं।


छोटे-छोटे दीयों से 

बड़े बड़े मटकों तक 

छोटे-छोटे खिलौनों से

बड़ी-बड़ी मूर्तियों तक 

काम की वस्तुओं से 

भगवान के बुतों तक।

 

अपने हुनर से तुझे 

नित नए नाम दिलाता हूं 

सबके मन में तुम्हारे लिए 

आदर पैदा करता हूं।

 

तू कहती है 

एक दिन तू मुझे रोंदेगी 

मैं तो हूं ही तेरे से 

निर्मित एक पुतला 

यानि तेरा ही अंश 


प्राण पखेरू उड़ने के उपरांत 

मैं तुझ में ऐसे समा जाऊंगा 

जैसे एक बच्चा मां की गोद में। बता

तुझ में 

मुझ में अन्तर ही क्या है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract