कुदरत से अच्छा नहीं भिड़ना
कुदरत से अच्छा नहीं भिड़ना
ये ज़मीं, ये आसमाँ
खूबसूरत है ये जहाँ
इंसान खिलवाड़ कर रहा
कुदरत भी बसता है यहाँ
रहने दो रोशन इसे सदा
ज़मीं है माँ, पिता है आसमाँ
इंसान तेरा है ये आसरा
इसके बिना जाएगा कहाँ
हो गए आजकल सुनसान
सरेआम कोरोना घूम रहा
इंसान घर में है बंध पड़ा
किये की क्षमा माँग रहा
इस घड़ी में तू सीख लेना
कुदरत से अच्छा नहीं भिड़ना।