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Indu Mehta

Abstract

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Indu Mehta

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कुछ पुरानी यादें

कुछ पुरानी यादें

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जीवन के कुछ पन्ने पलटते हुए,

कुछ गिरते हुए, कुछ संभलते हुए।

याद आ गए वह होली के दिन,

खेलते थे जब हम गुब्बारे गिन-गिन।


बेफिक्र जेबों में भरते थे रंग,

चलते थे हम दोस्तों के संग।

छोटे से दिमागों में बड़ी योजनाएं,

कैसे किसी पर रंग को लगाएं।


किसी को भी हमने,ना होता था छोड़ना,

एक तो गुब्बारा, हर एक के सर फोड़ना।

इतना रंग हमारे चेहरे पर होता था,

यारों में कोई भी पहचान नहीं होता था।


दुश्मनी के बदले भी लेते थे पूरे,

छोड़ते नहीं थे कोई काम हम अधूरे।

इतना रंग हम उनको थे लगाते,

आखिर में वह भी दोस्त बन जाते।


फिर आ गए याद दिन वह पुराने,

जब 'बुरा ना मानो होली' के गाते थे गाने।


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