खून की होली
खून की होली
न खेलो खून से होली, त्यौहर है यह रंगों का
रूहें कांप जाती है देख मंजर यह दंगों का।
ढोल की ताल पर पांव को थिरकने दो
प्यार के रंगों को हवाओं में बिखरने दो
ना भरो सिसकियां हवा में, जहां है शोर पतंगों का,
रूहें कांप जाती है देख मंजर यह दंगों का।
भाई को मार के माना, तू जीत जाएगा
मगर जीत का जशन तू किसके साथ मनाएगा
न बनाओ देश में फिर से तुम आलम यह जंगो का,
रूहें कांप जाती है देख मंजर यह दंगों का।
गुलाल का रंग भी तुमने खून में बदल डाला
शहर का हर गली कूचा तुमने खून से भर डाला
लाल हुआ खून से मेरा यह देश तिरंगों का,
रूहें कांप जाती है देख मंजर यह दंगों का।
