ऐ सखी
ऐ सखी


ऐ सखी मोहे रंगना है रंग में।
रंगना है रंग में, कान्हा के रंग में।
ऐसा रंग मेरे तन पे लगाना,
भूल जाऊं मैं सारा जमाना।
अपनी सुध बुध खो के भी मैं,
हरदम गांऊ कान्हा कान्हा ।
ऐ सखी
ऐसा रंग जो मन तक जावे,
जीवन भर जो उतर न पावे।
कैसा भी दुनिया का रंग हो,
इस पर फिर कुछ चढ़ ना पावे।
ऐ सखी
दुनिया के तो रंग है झूठे,
कान्हा का रंग जो चढ़ के न छूटे।
ऐसे रंग में मोहे रंग दो,
फिर चाहे यह दुनिया रूठे।
ऐ सखी
इस होली जो मैं रंग जाऊं,
मन की सच्ची खुशी मैं पाऊं।
जब तक सांस चले इस तन में,
कान्हा का ही नाम ध्याऊं।
ऐ सखी