“ कुछ ना कुछ हम भी लिखते हैं “
“ कुछ ना कुछ हम भी लिखते हैं “
कौन कहता है कि हम लिखते हैं ?
बस यूंही अपना दिल बहला लेते हैं !!
शब्दों का भंडार नहीं हैं !
अलंकारों का ज्ञान नहीं है !!
रस कितने होते हैं ?इसका भी अनुमान नहीं है !!
लय ,सरगम तो अच्छे लगते हैं !
सुर और तालों के गीतों को सुनते रहते हैं !!
हम भी इनलोगों को देखके कुछ सीखा करते हैं !
सीधी- साधी लहजों में हम भी कहते हैं !!
व्यंगों के बाणों को हम खुद सहते हैं !
भूलके भी लोगों को आहत नहीं करते हैं !!
श्रेष्ठों को आदर सत्कार समतुल्य को नमस्कार सदा करते रहते हैं !
छोटों को भी हम प्यार सदा किया करते हैं !!
मौन नहीं रहना सीखा जब लिखना चाहा लिख बैठे !
प्यार जहां जरूरत पड़ती है प्यार वहीं हम कर बैठे !!
