कुछ लम्हें
कुछ लम्हें
तराशने है कुछ लम्हें
जिनमें फुर्सत हो रफ़्तार नहीं।
जिनमें ठहरे ये जिंदगी
जो फिसल रही है
हथेली से रेत की तरह।
गल रही हो उस कश्ती जैसी
जो संघर्षशील तो है लहरों में
परन्तु है कागज़ की।
मानो एक कण जो तैरना चाहता हो
पर बहाव जो ले आता उसे बार—बार किनारे।