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Satyendra Gupta

Abstract

4.5  

Satyendra Gupta

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कुछ कर दिखाने की राह दिखाते है

कुछ कर दिखाने की राह दिखाते है

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271


जब हूं देखता आसमान को,

निहारता हूं जब बादलों की अरमान को,

बादलों की हैसियत कहां,

जो छुपा ले आसमान को,

ये तो बादलों की हौसला है,

जो आसमान को अपनी अहमियत बतलाते है,

कुछ कर दिखाने की राह दिखाते है।


इस दुनिया की भी अजब कारनामे है,

जितने लोग उतने अलग चेहरे बनाने है,

कौन सी सांचे का इस्तेमाल करते है,

दुनियां चलाने और बनाने वाले,


जितने लोग उतने अलग कंठ की ध्वनि भी,

कौन सी यंत्र का इस्तेमाल करते है,

दुनियां चलाने और बनाने वाले,

ये तो मन को विचलित कर जाते है,

कुछ कर दिखाने की राह दिखाते है।


जिस भगवान ने हमें बनाया,

क्या हम उन्हे बना पाएंगे,

जिस भगवान ने रचा हमें,

क्या हम उन्हे रच पाएंगे,

लेकिन न जाने क्यों,


कुछ लोग खुद को खुदा और भगवान मान लेते है,

जिसे बनाया भगवान ने उसे दास बना लेते है,

भूल जाते है हम क्यों आए थे धरती पे,

ना जाने कितने कुकर्म कर जाते है,

अंत समय आने पे फिर से राम याद आते है,

कुछ कर दिखाने की राह दिखाते है।


ईश्वर ने अगर दिया है वैभव और सुख,

तो बाटो दूसरों को भी और रहो सदा खुश,

पता नहीं ये जीवन की नैया कब डूब जाए,

डूबने से पहले जीवन को अमर बना जाए,

हम रहें या ना रहे,


अपने नाम को युगों युगों तक अमर कर जाएं,

यहीं सीख हमें खुशहाल बनाते है,

कुछ कर दिखाने की राह दिखाते है,

कुछ कर दिखाने की राह दिखाते हैं।।


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