कुछ ख्वाहिशें अधूरी सी
कुछ ख्वाहिशें अधूरी सी
दिल के एक कोने में
दबी हैं कुछ ख्वाहिशें
कभी पूरी होने के लिए
यदा-कदा मचल उठतीं है
कभी पंख लगा आसमां में
यूं उड़ जाना चाहती है
कौन सी इच्छा
पहले पूरी करूं मैं
ऐसी अनगिनत
जिम्मेदारियों के उलझन में
उलझ जाती हूं मैं
कभी मन की आंखों में
दिखती है अतीत की तस्वीर
कभी भविष्य के सपनों
की उभरती है तस्वीर
कभी तिलमिला कर
रह जाती है अपनी तक़दीर
कभी ये इच्छा होती
खाली रिश्तों को भर दूं
अपनेपन की भावना से
कभी ये महसूस होता
रौशनी से सरोबार कर दूं
बुझती जिंदगियों को
प्रेम रस की भावना से
कुछ अधूरी ख्वाहिशें
बहुत कुछ करवाती है
समय से पहले ही
लोगों को बड़ा बना जाती है
बेहिसाब ख्वाहिशें तो
तकलीफ़ें दे जाती हैं
जिंदगी है जबतक
ख्वाहिशें मचलती रहती हैं
जिंदगी जब थम जाती है
ख्वाहिशें भी खत्म हो जाती हैं
ख्वाहिशें पूरी हो जाती है तों
मन को सुकून मिल जाता है
और ख्वाहिशें अधूरी जो रह जाए
पूरा करने का जुनून सा रहता है
मन में जो चलते रहतें हैं
ख्वाहिशों के सिलसिले अंतहीन
ना जाने कहॉं जाकर रुकेंगे
ये तो हैं दिशाविहीन
कितनी ही ख्वाहिशें
दफ़न हो जातीं है
दिल के कोने में
सोचतीं हूं कुछ बची
इन ख्वाहिशों को
पैबंद लगा रख दूं
दिल के एक कोने में