कुछ हट के करिए।
कुछ हट के करिए।


पूरी दुनिया महामारी का शिकार,
भारत भी नहीं इससे दूर,
अर्थव्यवस्था है दयनीय परिस्थिती में,
गरीब आदमी है पीसा हुआ,
पैसे पैसे से मोहताज,
नज़र नहीं आता समाधान।
समस्या है सच्चाई से दूर भागने की,
सीधी बात करने से घबराने की,
परंतु सच कब तक छीपेगा,
एक दिन सर चढ़कर बोलेगा।
न है गांव में काम,
और शहर में भी मजदूर को सलाम।
बात अब सरकार पे आ गई,
कैसे काम करवाएं मुहैया,
जिससे लोगों की जेब में जाए रूपया,
वो खर्चें बाजार
में,
मांग हो जाए उत्पन्न।
बिना मांग अर्थव्यवस्था खाएगी,
घाटे पे घाटा,
सबका निकालेगी दिवालिया।
क्यों न केंद्र अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के पास जाएं,
और कर्ज उठाए,
और फिर वो पैसा गरीब आदमी को दिलाए।
जिससे गरीब खर्च करेगा बाजार में,
वस्तुएं बिकेंगी ,
मांग उत्पन्न होगी,
कारखाने चलेंगे,
फिर से बाजार सजेंगे।
ऐसा कुछ क्रांतिकारी करना होगा,
तभी मामला संभलेगा,
रोजगार पनपेगा,
और गरीब आदमी बच निकलेगा।