कुछ और नहीं कर सकते
कुछ और नहीं कर सकते
हिन्दू मुस्लिम करते रहना,
देश समाज जलाते रहना,
कुछ और नहीं कर सकते,
शाहिन बाग बसाते रहना।
जलते शहर लुटते मकां,
सुलगते जज्बात मिटते इंसा,
क्या फर्क क्या दर्द तुमको,
मुआवजा घोषित कराते रहना।।
जो बात बन सकती है बोली से,
तुम अड़े हो समझने गोली से,
बेसमझ गुमराह जनता मरती,
तो समझो और समझाते रहना।।
