कुछ और दास्तां
कुछ और दास्तां
घर लौट चलते हैं अब बहुत दूर निकल आए हैं
इसके आधे रास्ते भी तो तुमने नहीं बुलाया था
दिन भर खुली आँखों में गुजरी रात लिए घूमते हैं
नींद तो आई थी जब तेरी थपकियों ने सुलाया था
ये क्या हो गया है मुझे अजीब सी नाउम्मीद है
तुम थे पास तो हमने नम आंखों से मुस्कुराया था
अफवाह है आजकल वो मेरी मौत की दुआ करता है
उसी ने तो मासूम निगाहें मिला जीना सिखाया था
ये कौन लोग हैं मोहब्बत और शक साथ करते हैं
झूठे इल्जामों का खंजर उसने सीने में उतारा था।।