बहुत कोशिशें की हैं
बहुत कोशिशें की हैं
खुली आंखों में तमस घुलता है
एक ही तरकीब रातभर सोचते हैं
तुम्हे भूल जाने की
बहुत कोशिशें की हैं
हर नज़्म में जिक्र छुपा रहे
किसी मिसरे में न आए नाम
दफन रहो किसी कोने में दिल के
बहुत कोसिशे की हैं
लेकिन आंखों से बरस जाते हो
गम के सावन का भी इंतजार नहीं
कुछ नुक्शे अब भी बाकी हैं
हिम्मत नहीं आजमाने की
बहुत कोशिशें की हैं
तुम्हें भूल जाने की।।

