कुछ अनकही बातें
कुछ अनकही बातें
चलो चलते है हम आज कहीं दूर
जहां कोई ना हो तुम्हारी यादों के सिवा
मैं और तुम और मेरी ये पागल सी चाहत
हाँ हूँ मैं तेरे प्यार के काबिल नहीं
फिर भी ख़ुद को तुझसे दूर नहीं कर पाती
तू मेरा साया बनकर साथ तो रहता है
मगर मैं तो एक कोहरे सी धुंध हूँ
तू सर्दी की धूप है
मैं सूखी बंजर सी हूँ
तू तो सावन की बारिश सा है
तू बसंत का मौसम जैसा है
मैं पतझड़ का मौसम हूँ
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