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Deepika Raj Solanki

Romance

4  

Deepika Raj Solanki

Romance

कस्तूरी प्रेम

कस्तूरी प्रेम

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कस्तूरी- सी प्रेम की सुगंध,

ना समझ पाए हम,

भटकते तन्हाईयों में मृग बन,

प्रेम की फुहार के लिए तरसता तन और मन,

मृगतृष्णा की आग में हम भी जलते हरदम,

अनभिज्ञ थे इस बात से-

अपार प्रेम समंदर भरा है दिल के अंदर,

फंसे थे किस दुनियादारी में,

कस्तूरी प्रेम की छुपी थी,

अपने ही दिल के अंदर,

भटकता मन जब प्रेम बन आंखों से टपका,

प्रेम की फुहार ने मृगतृष्णा को जब झटका,

अमृत प्रेम के समंदर को मैंने समझा,

एहसासों का इंद्रधनुषी संगम,

बन रहा था प्रेम समंदर,

चांद तारों की छांव तले,

निर्मलता का अमृत प्रेम पले,

धूप की तपन में जो और निखरें और प्रबल बने हैं,

घटा बन अमृत प्रेम की फुहार से, धरा का सौंदर्य और संवारे,

कस्तूरी ऐसी अमृत प्रेम को समझे जो,

फिर वह किसी तृष्णा को ना तरसे।



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