कसम
कसम
ख़यालों में उसके चलते उसने रफ़्तार बढ़ाई थी
एक तो बड़ी ऊंचाई थी आगे बहुत बड़ी खाई थी
तमाम मोहब्बत के तोहफे गाड़ी में साथ लाया था
अपने दिलदार से मिलने वो अरसों बाद आया था
कभी न भूल जाने की उसने कसम जो खायी थी
इस बार वो पास बुलाने से पहले थोड़ा शर्मायी थी
पर खुदा की भी न जाने उस से क्या रुसवाई थी
उसके आने की खबर इस कदर उसने पायी थी
भारत माता की रक्षा की खायी वो कसम निभाई थी
एक माँ की गोद सूनी न हो उसने की भरपाई थी
उस छोर पर लटके बच्चे की उसने जान बचायी थी
नन्हे बच्चे संग देह उसकी तिरंगे में लिपटी आयी थी