STORYMIRROR

Jayantee Khare

Abstract

4  

Jayantee Khare

Abstract

कसक इक रात की

कसक इक रात की

1 min
311

रात जाती जागती सी

सुबह आलस से भरी सी


बात गहरी कब है ठहरी

रात के संग गुज़रती सी


भीड़ घेरे है किसी को

फिर भी तन्हा ज़िन्दगी सी


पास होती हर खुशी जब

एक भटकन अज़नबी सी


ख़ामख़ा के ख़ाब पलते

दिल में ऐसी कोठरी सी


प्यार का इक लफ्ज़ आधा

नामुक़मली लाज़मी सी


खंडहर ये शह्र वीरां

कौन मुद्दई बेबसी सी


दिन सुनहरी आस जागे

शाम तक जो डूबती सी


एक जुगनू ख़्वाहिशों का

बिन चरागां रोशनी सी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract