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Goldi Mishra

Abstract

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Goldi Mishra

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कश्ती

कश्ती

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ख़ुद को साबित करने की कोशिश में दिन रात लगे हैं,

ख़ामोश हैं बेशक पर एक अजीब से तूफान से जूझ रहे हैं,

टूटी कश्ती लिए हम मझदार में निकल गए,

ना पता है जाना किस ओर हम बस एक सफ़र को निकल गए

हर हालात से अब लड़ना है,

ना हथियार हैं कोई बस खामोशी से इस जंग को लड़ना है,


ख़ुद को साबित करने की कोशिश में दिन रात लगे हैं,

ख़ामोश हैं बेशक पर एक अजीब से तूफान से जूझ रहे हैं,

मेरा बैरी ये जग बन बैठा है,

हर कोई मेरी शकशियत पर सवाल कर बैठा है,

जो थे अपने वो भेदी बन लंका मेरी ही राख कर बैठे हैं,

हम सीने में अपने उम्र भर के ज़ख्म लिए बैठे हैं,


ख़ुद को साबित करने की कोशिश में दिन रात लगे हैं,

ख़ामोश हैं बेशक पर एक अजीब से तूफान से जूझ रहे हैं,

फरेबियों ने मुझे गले से लगा कर खंजर मेरे ही सीने में मारा है,

मेरा ये दिल एक बाज़ी वक़्त से हारा है,

कुछ लोग महज ख्वाब की तरह होते हैं,

कुछ शख्स ज़िन्दगी का उम्दा सबक होते हैं,


ख़ुद को साबित करने की कोशिश में दिन रात लगे हैं,

ख़ामोश हैं बेशक पर एक अजीब से तूफान से जूझ रहे हैं,

कोई सवाल कोई गिले कोई शिकवे नहीं,

उसका पता ही क्या रखते जिस राह हमें जाना ही नहीं,

गुम हो कर ही राहों पर शायद मंज़िल मिलेगी,

तपिश को सह कर ही रोशनी मिलेगी!



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