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Ashim Srivastava

Romance

3  

Ashim Srivastava

Romance

कश्मकश

कश्मकश

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सोचता हूँ इक बार,

फिर से जी लू,

भर कर बाँहो में तुम्हें, 

होठों को छू लू,

कुछ पल, साथ तेरे, 

वक्त गुजारू,

अपनी चाहतों को, बगैर मारे,

सब कुछ पा लू,

पर कहीं इन चाहतों में, 

जो तू ,न शामिल हो,

ख़्वाब ख़्वाब ही बने रहे, 

ख़ुशियाँ धूमिल हो,

इसी कशमकश में,

उलझा हुआ हूँ मैं,

तुमसे दूर होकर भी,

 खामोश पड़ा हूँ मैं !


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