"प्रवासी मज़दूर हूँ "
"प्रवासी मज़दूर हूँ "
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दूर घर के कौन
जाना चाहता है साहब !
ये रोटी की पहिया है
बस दूर लिए जाती है !
परिवार का पालन पोषण जो
भली भॉंति करता है !
वो आँसू आँखों में लिए
सर झुका के कहता है
"काम न होने से मजबूर हूँ"
हाँ हाँ मैं ही मैं ही
प्रवासी मज़दूर हूँ !
हाँ हाँ मैं ही
प्रवासी मज़दूर हूँ !
हौसला ऐसा जो
मीलों पैदल चल सके
पहाड़ काट कर
उसे राह में बदल सके
जीवन कैसा भी हो
जीने को तैयार बैठे है
मदद का हाथ बढ़े न बढ़े
ये खुद्दार बैठे है
अपनी जरूरतों को कम रख
हमें जीना सीखाते है
नमन है इनको जो
इस हाल में मुस्कराते है !
नमन है इनको जो
इस हाल में भी मुस्कराते है
