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Ashim Srivastava

Abstract

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Ashim Srivastava

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मै इतनी पराई क्यों ?

मै इतनी पराई क्यों ?

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कोरोना का लॉकडाउन ख़तम होने के बाद स्पेशल ट्रैन, जो प्रवासी मजदूर के लिए चलाया गया था, उसी से, मैं घर जा रही थी ! लगभग तीन साल बाद ! मेरे साथ मेरे दो छोटे बच्चे भी थे ! मेरे ख्यालो में कोरोना के दहशत से ज्यादा मेरी माँ थी। जो काफी दिनों से बहुत बीमार थी और अक्सर फ़ोन पर बोला करती थी "तू कब आएगी ? मेरे मरने के बाद ?"

दो दिन के सफर में मुझे सभी का पिछला मुलाकात याद आ रहा था। कैसे, भाई के शादी में घर में ख़ुशी का माहौल था , मैं भी खूब नाची थी बारात में ! छोटे भाई के शादी के सारे अरमान अपने माँ पापा के साथ पुरे हो रहे थे। मेरा अपना एकलौता भाई अपनी पसंद से शादी कर रहा था। रिसेप्शन की रात जो कपडा नई बहु पहनना चाहती थी वो थोड़ा फीका लग रहा तो मैंने उसे अपना समझ कर बोला "दूसरा चटक साड़ी पहन लो, ज्यादा अच्छा लगेगा !" बस वहाँ से सब बदल गया। मेरा ये कहना, मेरे भौजाई के साथ भाई को भी पसंद नहीं आया। और एक हंगामा खड़ा हो गया ! कुछ दिनों के बाद मैं तो वहाँ से चली आई पर माँ से पता चला की मेरा भाई भी अपने पत्नी के साथ घर छोड़ दिया। और परिवार से दूर होने का सारा दोष मुझे ही दिया जाने लगा। क्या इतना बुरी थी मैं, इतनी पराई ? कुछ महीने बाद उस साल रक्षाबंधन को मैंने अपने भाई को राखी भेजा और फ़ोन किया। छोटा भाई-भौजाई उस छोटी बात से अभी भी गुस्से में थे , और

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nd-color: rgb(255, 255, 255); text-decoration-style: initial; text-decoration-color: initial; display: inline !important; float: none;">भाई ने फ़ोन पर ही मुझसे बोला, मैं उसके लिए मर गई और, मेरे राखी को वो फेक देगा और भी बहुत कुछ सुनाया।

अब फिर एक बार मेरा सामना मेरे भाई से होगा जो माँ के बीमारी की बात सुन उनके पास आया है और उसकी बीबी अभी बच्चा होने के कारन मायके में है। 

पापा ने कहा मेरे आने के बाद मेरा भाई वहाँ से चला जायेगा पर पता नहीं बहुत डर लग रहा था माँ को लेकर और भाई को लेकर भी । काफी लम्बे समय बाद हम सब परिवार मिल रहे थे।मै घर पहुंची तो परिवार अब वो परिवार नहीं था माँ की तबियत काफी ख़राब थी। भाई पापा सब चुपके चुपके रोते थे मैं भी अपने नम आँखो से माँ की सेवा करती थी। भाई से सिर्फ माँ के दवा के लिए ही बात होती थी। माँ इस हाल में भी मुझे छोटे भाई से ज्यादा बात न करने की ही सलाह देती रहती और पुत्र मोह खुल कर दीखता। लगता शायद मेरा औरत होना ही दोष है। 

अब जब रक्षाबंधन करीब है दिल डरता है भाई को राखी बांधने से पर एक मन ये भी कहता है की माँ के इस अंतिम दौर में, अगर उसके सामने हम दोनों, अपने रिश्तो की कडुवाहट भूल मिल गए तो कुछ दिन और माँ की उम्र बढ़ जाएगी। पर मुझे पता है मेरा भाई आज भी नफरत करता है।पता नहीं क्यों ? और जरा भी कम नहीं हुई है नफरत। माँ पापा ने भी कभी हमें आपस में मिलाने का प्रयास नहीं किया। 

खैर मेरे भाई तुम जहाँ भी रहो, जैसे भी रहो, मेरी शुभकामनाये सदैव तुम्हारे साथ है। राखी तो एक माध्यम है रिश्ते तो दिल से होते है।मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है आज भी तुम मेरे प्यारे भाई हो और रहोगे भी। 

 

   



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