क्रूस
क्रूस
गुनाह मेरे थे बेशुमार
मुजरिम वह ठहराया
देने मुझको नया जीवन
मसीहा ने बोझ क्रूस का उठा लिया।
लहू का मोल देकर
अनमोल मुझे कर दिया
अपनी जानको भी गँवाकर
अनोखा प्यार क्रूस पर जता दिया।
पापों से आज़ाद कर
अपनी संतान बना लिया
वायदे के वारिस ठहराकर
क्रूस को उठाके चलना सीखा दिया।।
