करुणा के पल
करुणा के पल
जाने ये कैसा वक़्त आ गया
इंसान क्यूं विवश हो गया
दर - बदर भटक रहा
पांव छलनी हो रहे
मजबूरी है दामन थामे हुए
अपने अपने ख्वाबों को छोड़
हैं घरौदो में सिमट रहे
कहीं दो वक़्त की रोटी पाने का होड़
तो कहीं प्यासे बिलखते बच्चों का शोर
कहीं सुलगती चिताओ को देख दिलों में रोष
तो बेबसी मायूसी का मंजर हर ओर
कहीं इंसानियत शर्मशार हो रहा
तो कहीं साथ होकर भी कोई दूर हो रहा
जाने ये कैसा वक़्त आ गया
दिलों में ना उमंग रहा
बस खौफ दस्तक दे रहा
एक छोटे से "कोरोना" ने बदल दी जिंदगी
बेरंग सी हो गई जिंदगी
संघर्षों से जूझ रही जिंदगी
बस "नयी उम्मीदों" के आसरे अब जिंदगी !