कर्तव्य
कर्तव्य
कर्तव्य मेरा है रक्षा देश की
नहीं करता मैं परवाह जान की
हाँ मैं देश का एक सिपाही हूँ
सीमा पर तैनात वीर सेनानी हूँ
कभी दुश्मन है आग के गोले बरसाता
नफरत का विष मेरे तन को झुलसाता
कठिन परिस्थितियों से मैं न ड़रता
कठोर तपस्या कर अपना प्रण निभाता
चाहे हो उबलती गर्मी या बर्फीली ठण्ड़
न होने दूँगा मैं देश की गरिमा खण्ड़
सुरक्षा देश की हर हाल में करूगा
कर्तव्य पथ पर ड़टा सदैव मैं रहूँगा
चाहे देनी पड़े मुझे कोई भी अग्निपरीक्षा
अंतिम क्षण तक करूँगा मैं देश की रक्षा
यदि कर्तव्य-पथ पर पड़े त्यागने मुझे प्राण
न होगा मेरे लिए इससे बड़ा कोई अभिमान।