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Sandeep Murarka

Tragedy Others

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Sandeep Murarka

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कृष्ण की विवशता

कृष्ण की विवशता

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कलियुग के कृष्ण विवश हो उठे

करुणावश रुदन स्वर वो बोल उठे

सखा भाई शिष्य भक्त तुम प्रियवर

हे अर्जुन कहो कहाँ बैठे हो छिपकर


माना यहाँ कोई कुरुक्षेत्र नहीँ है

माना महाभारत का उद्घोष नही है

ना पन्चाली का उपहास हुआ है

ना कुंती पुत्रों का अपमान हुआ है


फ़िर खड़े क्यों ये लिये बिष बुझे तीर

न भीष्म न द्रोण न शकुनी अबकी अधीर 

सुशासन सुयोधन युधिष्ठिर नहीँ गरजेगें

ना ही महाबली कर्ण अब शस्त्र उठायेगें


ना अभिमन्यु का रुधिर बहेगा

ना ही अश्वत्थामा मारा जायेगा

लेटने को तीर शय्या परकोई भीष्म तैयार नहीँ

अंधा बनकर जीना गांधारी कॊ अब स्वीकार नहीँ


अरे कौन पूछेगा संजय तुमको

बर्बरीक विदुर की अब पहचान नहीँ

कहो फ़िर क्यों करूँ पाठ मैं गीता का

हे गांडीवधारी, जब तुम हो ही नहीँ मैदान में


क्यों दिखाउँ रुप अपना भयँकर मनोहर

अन्याय अधर्म के विरूद्ध कहो किसको उकसाऊँ

सारथी बनाने कॊ जब तुम ही तैयार नहीँ

हे धनंजय कहो किसके लिये सुदर्शन उठाउँ


धरती भारत तुलसी गंगा और गीता

मातायें सभी फूट फूट कर रो रही हैं

देख अवस्था पृथ्वी की अब रहा नहीँ जाता

भार शेषनाग देव से भी अब सहा नहीँ जाता


धुर्व प्रह्लाद विदुर विभीषण द्रौपदी मीरा रहे नहीँ

अब तो अजामील के द्वारा भी मैं पुकारा नहीँ जाता

हूँ जहाँ मैं वहाँ कोई आता नहीँ

भीड़ लगी है जहाँ, वहाँ मैं जाता नहीँ


गौ अग्नि ब्राह्मण तीनों के कण्ठ सूखे पड़े

इत्र गुलाब और रातों की जाग मुझको भाती नहीँ

व्यासपीठ भी हुई दूषित कलंकित


कहो सव्यसाची अब मैं क्या करूँ

कर रहा महसूस असहाय मजबूर लाचार

हे श्वेतवाहन हो दूर विवशता ऐसा उपाय करो


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