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Sandeep Murarka

Inspirational Others

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Sandeep Murarka

Inspirational Others

लॉकडाउन में गंगा

लॉकडाउन में गंगा

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हिमालय की चोटियों से निकल कर

तुम्हारे गांव गांव में डोलती गंगा

मैं गंगा

कल कल करती गंगा

कल कल बहती गंगा।

मेरे ही पानी से खेती करते हो,

मेरे पानी से 400 तरह की मछलियाँ पाते हो,

अब तो मेरे पानी से बिजली भी बनाने लगे हो,

हरिद्वार हो या इलाहबाद मेरे ही पानी में नहाते हो,

बोतलों में भरकर मेरा पानी पूजा के लिए ले जाते हो,

ऋषिकेश में रैफ्टिंग क्याकिंग स्पोर्ट्स भी करने लगे हो ।

पहले मेरे पानी से कमाया,

जब पेट नहीं भरा ,

तो मुझ पर पुल और बाँध बनाकर कमाया,

फिर पोर्ट बना कर कमाया,

फिर भी पेट नहीं भरा,

तो अब मेरी सफाई के नाम पर ही कमा रहे हो !

जानते हो ,

धरती के नुकीले पत्थरों से

स्वयं को चोट पहुंचाती हुई

2525 किलोमीटर बहती हूँ ।

क्यों ?

क्योंकि तुम मुझे माँ कहते हो,

माँ गंगा !

इसीलिए बहती हूँ

तुम्हें पीने का पानी देने के लिए,

तुम्हारी भूख मिटाने के लिए,

तुम्हारे खेतों को सींचने के लिए।

और तुम !

एक ओर माँ कहते हो,

सुबह शाम आरती करते हो,

दूसरी ओर

डेली 3000 टन कचड़ा

मेरे सर पर डाल देते हो ।

समय के साथ बुढ़ापा,

स्वाभाविक हैं, आना ही था ,

किन्तु बीमार नहीं थी मैं।

अरे ! मेरे भारत में,

मेरे अपनों ने,

हाँ तुमने !

मुझे बीमार बना दिया।

लेकिन आज तुम खुद डरे हुए हो

खुद से

खुद के पैदा किए हुए कोरोना से

कोविड 19 से !

घरों में कैद हो

गाड़ियाँ बन्द

फैक्ट्रियां बन्द

सबकुछ बन्द ।

सब चिन्तित है....

पर सच कहूँ

मैं निश्चिन्त हूँ खुश हूँ !

मेरे ऊपर कचड़े का प्रेशर कम हो रहा है

मैं साफ हो रही हूँ

स्वयं प्रकृति मुझे साफ कर रही है

स्वयं समय मुझे साफ कर रहा है ।

मैं गंगा

कल कल करती गंगा

कल कल बहती गंगा

कही स्वर्ण रेखा बनकर

कहीं कावेरी बनकर बहती गंगा ।



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