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Sandeep Murarka

Abstract Others

4  

Sandeep Murarka

Abstract Others

इतिहास

इतिहास

2 mins
450


हाँ मैं रो रहा हूँ 

सच है कि मेरी आँखें सूजी है 

मेरी आँखो के नीचे काली छाई पड़ गयी है ।

हो भी तो गये कितने वर्ष 

मुझ को फूट फूट कर रोते हुए 

हाँ मैं इतिहास हूँ, तुम्हारे भारत का इतिहास ॥

मैंने बहुत कोशिश की 

कि लिखने वालों तुम मुझे पूरा लिखो , 

पूरा ना भी लिखो तो अधूरा तो ना ही लिखो ॥

पर कलम तुम्हारी 

मर्जी तुम्हारी, समय तुम्हारा, स्याही तुम्हारी ,

मौका परस्त तुम जो मन आया लिखते चले गये ॥

मैं रोकता रहा ,

तुम छपते चले गये , पन्नों मॆं बँटा पड़ा मैं 

तुम टुकडों को अलग अलग जिल्द करते चले गये ॥

मैं घबराया,

कई बार तुम्हें समझाया, खुद से मिलवाया ,

पर तुम किसी और के चश्मे से मुझे देखते रह गये ॥

टपक गये आँसू ,

कुछ गंगा में जा गिरे, कुछ सिंधु में जा मिले ,

पंजाब यहाँ भी लिखा तुमने, पंजाब वहाँ भी लिखा तुमने ॥

मेरी सिसकियों से बेखबर ,

दोनों ओर तुम हिमालय लिखते चले गये ,

कश्मीर के पन्ने को लिखकर स्याही तुमने क्यों उंडेल दी ?

परवाह न की मेरी तुमने 

कुछ पन्ने केसरिया कपड़े में बाँध कर रख लिये 

कुछ पन्नों को लाल हरे सुनहरे नीले कपड़ों में बाँध दिया ॥

काँपते होठों से मैने 

तुम्हें कई बार रोकने की कोशिश की ,

पर सत्ता के नशे में चूर तुम मुझे रौंदते चले गये ॥

मेरी लाल आँखो के सामने ,

बदल दिया मेरे कई बच्चों का नाम 

मेरे ही सच कॊ झूठ और झूठ को सच लिखते चले गये ॥

अपाहिज हूँ मैं आज ,

रोज़ मेरे अंग कमजोर पड़ रहे हैं 

कोई विक्रमादित्य कॊ तो कोई टीपू पर प्रश्न कर रहे हैं ॥

मैं कमज़ोर क्या हुआ ,

वाल्मीकि वाले पन्ने तुमने फाड़ दिये ,

काशी मथुरा के किस्सों को किस्सा ही बना डाला ॥

जर्जर कर दिया मुझ को 

शिवाजी नानक कुंवर बिरसा सुभाष 

इन पन्नों की जगह सियासत की तिजारत* ने ले ली ॥

कंकाल सा देखता रहा मैं 

अपने पन्नों को कटते , फटते ,छँटते

और मेरे मरे नायकों कॊ मृत्युपर्यन्त जाति बदलते ॥

अर्थी पर लेटा हूँ मैं ,

श्मशान ले जाने की तैयारी है ,

मौत का कारण खुद मैं लिखूंगा, अब मेरी बारी है ॥

*व्यापार



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