करना ही होगा अब उपचार
करना ही होगा अब उपचार
हमने अपनी मां वसुधा पर,
किए हैं बहुत ही अत्याचार।
घायल इतना कर दिया इसको,
करना ही होगा अब उपचार।
प्राकृतिक आश्रय जल-वन
से निर्वहन हमारा होता था।
प्रकृति से अपना हमसे इसका,
पालन-संरक्षण उत्तम होता था।
ज्यों-ज्यों संख्या और बुद्धि बढ़ी,
त्यों-त्यों हमने दी इसको पीड़ा।
निज बुद्धि का दुरुपयोग किया,
आया शान व लालच का कीड़ा।
सीना चीर उजाड़ी हरियाली और,
बहु शैल शिखर भी तोड़ दिए।
बहु बांध बना रोका जल प्रवाह,
नदियों के पथ भी हैं मोड़ दिए।
शस्यश्यमला धरा विकृत कर दी,
बहु भवन और उद्योग बना करके।
उजाड़े जंगल अति ही लालच में,
वन्य-जीव भगे तब डर-डर के।
आज जल-वायु-मृदा संदूषित हैं,
जननी का अस्तित्व खतरे में है।
भूजल स्तर गिर रहा है बड़े तेज,
परिश्रम छोड़ मानव नखरे में है।
वसुधा संरक्षण से ही अपना रक्षण,
प्राकृतिक स्रोतों की रोक छेड़छाड़।
पादप रोपण - सरिता निर्मलीकरण,
प्राकृतिक संबंध होंगे करने प्रगाढ़।
योजनाओं की कल्पना करने से यह,
समस्या तो हल ही नहीं हो पाएगी।
अस्तित्व हमारा तब ही बच पाएगा,
जब सुरक्षित मां वसुधा हो जाएगी।
