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Pallavi Goel

Inspirational

5.0  

Pallavi Goel

Inspirational

कर्मयोगी

कर्मयोगी

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ऐ बालक !तू नजर गड़ाए ,

क्यों तकता धरती की ओर ।


परतों के भीतर क्या दिखता,

तुझको असीम सुखों का छोर।


हाथ फिराता ,हाथ डुलाता,

हैर-फेर क्या ढूंढ रहा तू ।


क्या बन के फिर से शिशु- सा

पय स्रोतों की आस लिए तू।


फटी बिवाई मुँह खोलकर,

दिखती कुछ निगलने को तत्पर।


खुश्क लबों पर जीभ फिराता,

छुद्र आस पर डटा हुआ तू।


तप्त धरा है, छाया नहीं जरा है

रत दिखता तू श्रम की ओर ।


चुनता जाता है जो तू अनवरत,

लोहा, कागज, तांबा, कासा।


स्वेद कणों की कालिमा से उन्हें,

नहलाता शुद्ध करता जाता।


तेरी फटी कचरे की झोली,

लगती सुनार की भरी तिजोरी।


तू योगी है या भोगी है

कर्म रेख की पकड़े डोर।


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