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Pallavi Goel

Others

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Pallavi Goel

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आर्य माता

आर्य माता

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सोचती हूं मैं प्रायः 

क्या मैं वही हूं ?


स्वर्णालंकार जटित, रत्न खचित,

महिमामंडित ,आर्य जन्मदात्री ।


तैंतीस कोटि देवों से पूजित ,

यज्ञ की अग्नि से तपित।


ऋषि -मुनि,ज्ञानियों से पूरित, 

गिरि श्रृंखलाओं से सृजित।


 सरित जल से समृद्ध ,

हरित क्षेत्रों से लसित।


युगों से खड़ी यही मैं इसी 

रूप में, सभी को समाती ।


कोई भेदभाव न किया मैंने,

आए तेरे अतिथि ,तेरे घाती।


कहीं कोई चाहत न थी 

सिवाय सम्मान पाने की।

 

शक ,कुषाण ,हूण ,यूनानी,

तुर्क ,गुलाम, खिलजी, ईरानी।


अफगानी , मुगल ,अंग्रेज ,लोधी

यह आक्रमणकारी थे तेरे वैरी।


लूटा, नोचा ,रौंदा मुझको ,

बार-बार देकर  फेरी।


हर बार आगमन पर उनके,

चीख निकलती थी मेरी।


लूट -खसोट सहन की मैंने ,

अति थी अंग की बाँटा -बाँटी।


अब और ना बाँटो मुझको,

 करबद्ध मैं माथ झुकाती।


आज पुकारती मैं तुझको 

कहाँ हो तुम मेरी संतान।


आओ बचा लो मुझको,

मैं हूँ तुम्हारी आर्यमाता।



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