करे कोई
करे कोई
करता है प्यार कोई तो धोखा करे कोई
क्यों इश्क़ का कभी कभी सौदा करे कोई।
ये धड़कने धड़कने लगी तेरे आने से
चाहत यही इलाज तो इनका करे कोई।
दिल से मिला जो दिल तो हुई दास्ताशुरु
परवाह फिर जहां की भला क्या करे कोई।
महफ़िल में तज़किरा भी क़मर का बड़ा चला
दिल चाहा उस समय तेरा चर्चा करे कोई।
माँगे सबूत प्यार का मेरा ज़हान में,
हिम्मत नहीं किसी की ये दावा करे कोई।
बस स्वार्थ में चला ही चला जा रहा ज़हां
परमार्थ की तो क्या भला चर्चा करे कोई।
हाँ ! कालिदास बनना तो आसान है नहीं
सच को मगर क़लम से तो लिक्खा करे कोई।
चलता रहे वफ़ा को "कमल" साथ में लिए
वो चाहे उससे भी यही वादा करे कोई।