कोरोना से बाल संवाद
कोरोना से बाल संवाद
होली पर छुट्टी शुरू हुई थी,
फिर स्कूल का मुंह न देखा है,
ग्रीष्म हो या अवकाश शरद का,
खिंची घर के बाहर रेखा है
तुम जब से जीवन में आये,
अध्यापक मित्र सब हुए पराये,
मोबाइल पर इन सब का चेहरा,
हम अब कब तक और निहारेंगे,
अब हे कोविड महाराज बतादो,
कब अपने घर आप सिधारेंगे।।
कितना अच्छा वो समय था अपना,
जब तुम ना थे इस जीवन में आये,
ख्वाबों सी थी दिनचर्या वो अपनी,
रह रह कर अब वो दिन बस भाएँ,
वो सुबह को अलसाते से उठना,
हड़बड़ में स्कूल की वो सब तैयारी,
स्कूल बस में वो सारे जहां की गपशप,
वो क्लास में शरारत की सब तैयारी,
वाद विवाद, खेलकूद या शैतानी
अब इनमें हम कब जीतेंगे या हारेंगे,
अब हे कोविड महाराज बतादो ,
कब अपने घर आप सिधारेंगे।।
ये दुख की गठरी रख सर अपने,
इस मन को क्या क्या समझाएं,
स्कूल जाने से छुट्टी मिली मगर,
अब घर के हर कोने स्कूल सजाए,
देख कैमरा इस फ़ोन का दिन भर,
दर्पण भी हमको रास न आये,
कितने सपने , कितनी उम्मीदें खुद से,
हम कब तक अब इन को मारेंगे,
अब हे कोविड महाराज बता दो ,
कब अपने घर आप सिधारेंगे।।
टीवी पर आने वाली खबरें भी,
दिल को यूं तो बहुत डराती हैं,
तुम जैसे कोई सागर अथाह हो,
जिसकी नई लहर अब आती है,
वैक्सीन में अभी तो समय है थोड़ा,
बस मास्क ही तब तक साथी है,
कितने प्रिय मेरे तुम खा ही चुके,
क्या बच्चों पर भी कहर उतारेंगे,
अब हे कोविड महाराज बता दो,
कब अपने घर आप सिधारेंगे।।
