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Himanshu Jaiswal

Abstract

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Himanshu Jaiswal

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कोरोना को हराएंगे

कोरोना को हराएंगे

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बंदिशों में रहना तुझे भा नहीं रहा है

क्यूँ घर में कैद है कहीं जा नहीं रहा है ?


सोच क्यों इतना कहर "उसका" बरप रहा है

कि तू अपनी आज़ादी को तरस रहा है


माना किसी देश विशेष से आयी ये महामारी है

पर कहीं न कहीं इसमें अपनी भी भागेदारी है


ख़ुद को तूने समझा श्रेष्ठ और प्रकृति से खिलवाड़ किया

पशु पक्षी को स्वार्थ हेतु तूने बहुत संहार किया


पर वो कहते है न कि वक्त सबका आता है

राजा भी रंक है बनता और रंक राजा बन जाता है


तेरे इस अभिमान को "उसने" ऐसे तोड़ा है

की तुझको बना कैदी अपने घर मे छोड़ा है


पर याद रख की सबक जब "वो" देता है

उसमें कहीं न कहिं तेरा हित ही होता है


तुम उसके संतान हो वो तुमसे प्रेम करता है

धैर्य रखो खुद को सुधारो वो सबकी खैर करता है।


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