कोरोना की असमंजस
कोरोना की असमंजस
बड़े गरूर में था 'करोना'
उदण्ड नशे में झूम रहा था
विनाशकारी, निष्ठुर असुर बन
सारे विश्व में घूम रहा था
स्थिति विकराल बना कर
लाखों के प्राण गटक गया
पर भारत में आकर मानो
अपनी राह से भटक गया
शुरू शुरू भारत में इसने
खूब उत्पात मचाया
सोते जागते सब चैनलों ने
सबको 'कोरोना राग' सुनाया
सरकार ने भी भांप स्थिति
देश में लॉक डाऊन लगाया
लाठी चलाई कर्फ्यू लगाए
पर ये न समझ किसी की आया
शादियों, त्योहारों पर भीड़ देख कर
उसका सिर चकराया
बेकदरी, बेपरवाही खुद की देख
करोना मन ही मन घबराया
घिर असमंजस में उसके मन में
कुछ ऐसा विचार आया
सारी दुनिया ख़ौफ़ से मेरे
चीख रही और तड़प रही
मरीजों की गिनती देखो
दिन प्रतिदिन बढ़ रही
पर भारत के लोगों में देखो
और ही मस्ती उमड़ रही
थर थर कांप रही है दुनिया
देख प्रकोप मेरे विध्वंस का
भारत में कौन ग्रह के प्राणी
जिन्हें ख़ौफ़ न मेरे दंश का
लाखों इनकी आखों के समक्ष
मैंने कब्र में सुलाए ,
फिर भी जाने क्यों भय नही मेरा
क्यों न ये मुझसे घबराएं
ना कोई मुहँ पर मास्क लगाता
ना सोशल डिस्टनसिंग का रखे ख्याल
रैलियों में बारातों में भीड़ लगी है
बेपरवाह हो कर मचा रहे हैं ये धमाल
क्या ये लोग मूर्ख हैं
या हैं ये लापरवाह
मेरे प्रकोप से अनजान क्यों हैं
क्योँ नही इन्हें जान की परवाह
घर पर रहो सुरक्षित रहो
बार बार किया इनको आगाह
क्यों ये लोग भूल कर रहे
संक्रमण का जरिया बन रहे
इनको नही फिकर अपने
बच्चों और बूढ़ों की जान की
मैं क्यों सोचूं इनके लिए
सवारी ज़िम्मेदार खुद अपने सामान की
छोड़ो मुझे क्या लेना देना
मुझे तो है संक्रमण फैलाना
मैं दूत यमराज का ,
मुझको अभी और तांडव मचाना ।।