कोरोना अब तेरी हार सुनिश्चित ह
कोरोना अब तेरी हार सुनिश्चित ह
क्या है! कौन है तू!
तेरे अकेली औकात ही क्या!
तू एक अर्ध-जीवित कतरा!
अर्ध जीवित, अंश जीवन का।
मानवता के खंडहर में से,
मानवता के ही प्रमाद से,
मिला है जीवनदान तुझे ,
यूं न इतरा, ऐ परावलंबी!
माना आज मानव खुद खड़ा,
खुद की बर्बादी की कगार पर,
अपने ही अहंकार की आड़ में,
बंटा, धर्म औ' जाति की बाड़ में ,
तूने शुरू कर दी ये मनमानी !
सहस्त्रों की मृत्यु से तू ना इतरा !
अब तू है मेहमां कुछ दिनों,का
इन्सान जाग उठा,औ' तू गया।
सब हाथ धोकर पड़े हैं तेरे पीछे,
छूना ही बंद कर दिया है सबने,
नहीं मिलेगा एक भी जिस्म ज़िंदा,
कि तू पनपे, तेरी मौत है निश्चित।
कोरोना तुझे अब जाना होगा,
हर एक इन्सान कटिबद्ध है,
तुझे हराने के लिये संकल्पित है,
कोरोना तेरी हार सुनिश्चित है।