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varsha sagdeo

Abstract

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द्रौपदी की व्यथा

द्रौपदी की व्यथा

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हे पार्थ ,

 सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी 

  मेरे प्राण प्रिय.


स्वयःवर में मत्स्यवेध करके प्रण जिता था तुमने,

मुझे पाया था, मै थी अर्धांगिनी सिर्फ तुम्हारी ,

मुझ पर अधिकार था सिर्फ तुम्हारा!


पांच पांडवो की पत्नी बनने के,

कुंतीमाता के अन्यायपूर्ण आदेश को

उसी अधिकार से क्यों नही नाकारा तुमने!


कौरवो के साथ द्यूत के खेल में

मुझे दाँव पर लगाते ज्येष्ठ भ्राता को, 

उसी अधिकार से क्यों नही रोका तुमने!


भरी सभा में मुझे अपमानित करके ,

चीरहरण करने वाले दुष्ट दुशासनाला को,

उसी अधिकार से क्यों नही ललकारा तुमने !


राजा द्रुपद की बेटी धृष्टधुम्न की बहन,

महा पराक्रमी धनुर्धर अर्जुन की अर्धांगिनी ,

प्रताड़ित होती रही एक अनाथ अबला नारी सी,

ये कैसी अगम्य लीला थी केशव तुम्हारी !


ये कैसी विटंबना है,ये कैसा छलावा है?

सीता हो या द्रौपदी, रजिया हो, या पद्मिनी ! 

प्रताड़ित होना ही हर नारी की नियती क्यों ?



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