कोरा पन्ना
कोरा पन्ना
बहुत जानता है पुरुष
औरत के बारे में
लिख सकता है ग्रंथ
उसके चरित्र के बारे में।
वैसे भी हमारे समाज में
परिवार में
प्रशंसा हो तो पुरुष का नाम
बुराई हो तो औरत को ताज।
पुरुष के जीवन का हर पन्ना
जुड़ा है इक औरत से
माँ ,बहन , पत्नी ,बेटी
कई रूप में है औरत इक पन्ना।
कोरा पन्ना होता है उस का मन
छाप छोड़ देता है जुड़ने वाला हर जन
बचपन से उसे सीखा दिया जाता है
लड़की हो तुम , मन पर छापा जाता है।
अपने ही घर में
भाई से पीछे रखा जाता है
पराई अमानत कह
एक पन्ना और घडा़ जाता है।
बड़े होने पर
अहसास दिला दिया जाता है
ससुराल के नाम पर
कई पन्नों का फरमान लिखा जाता है।
ससुराल
एक हौवा बना दिया जाता है
उस कटु सत्य से रूबरू होने से पहले
बड़ा सा चिट्ठा पकड़ा दिया जाता है।
डोली जहांँ जाती है
उसी वक्त ऐलान हो जाता है
अर्थी भी वहीं से उठेगी
एक पन्ना और लिख जाता है।
ससुराल में हर कदम
फूंक फूंक कर रखा जाता
फिर भी माँ बाप के नाम तानों से
अनगिनत पन्नों को लिखा जाता है।
जिसके सहारे छोड़ा मायका
उसने भी साथ न दिया दिल से
गृहस्थी की चक्की में पिसती के
कई पन्नों को और भर दिया जिसने।
हर दिन इक नई ताजगी से
शुरू करती थी वो
कोई न कोई जीवन गाथा में
जोड़ देता था पन्ना और।
कुछ ऐसी है औरत की राम कहानी
जो सुनी मैंने दुनिया की जुबानी
दावा किया जाता है उसे जानने का
क्या दिल में झाँका कभी किसी ने ?
अबला या सबला
पता नहीं !
प्यार,मान, सम्मान के नाम
आखिरी पन्ना कोरा रह जाता है उसका
कोरा पन्ना ।