कॉलेज के वो दिन
कॉलेज के वो दिन
वो दौर भी क्या दौर था,
यादों से भरा और मस्ती मोज का वो दौर था।
वो दिन कॉलेज के क्या दिन थे,
सभी दोस्त अपनी ही धुन में खोए रहते थे,
कभी कॉलेज के बाहर गप्पे मारना,
तो कभी केंटीन की गर्म चाय का लुफ्त उठाना।
वो दौर भी क्या दौर था,
यादों से भरा और मस्ती मोज का वो दौर था।
कोई कॉलेज में सपने लेकर आया था,
तो कोई कुछ कर दिखाने का हौसला,
कोई मस्तमौला था,
तो कोई गहरी खामोशी में डूबा।
वो दौर भी क्या दौर था,
यादों से भरा और मस्ती मोज का वो दौर था।
परिक्षा के दौरान एक अजीब हलचल सी हो जाती थी,
सलाना की पढ़ाई दिमाग से ओझल हो जाती थी,
रात दिन एक करके इम्तेहान की तैयारी करना,
और इम्तेहान के बाद एक अलग जश्न मनाना।
वो दौर भी क्या दौर था,
यादों से भरा और मस्ती मोज का वो दौर था।
फिर सब अलग अलग हो गए,
अपनी अपनी दुनिया बनाने में व्यस्त हो गए,
वो दोस्त और वो लम्हे बेहद खूबसूरत थे,
कॉलेज के दिन भी क्या दिन थे।