कॉलेज एक अनजान सफर
कॉलेज एक अनजान सफर
सब कुछ पीछे छोड़ के,
नये सफर पे चल निकलना था,
अब उस स्कूल को अलविदा कह,
उन यादों से अनजान बनना था।
अब एक नयी दुनिया में,
मैं शामिल हो गयी,
पर सोच रही थी क्या,
मैं इसके काबिल हो गयी।
पुराने दोस्तों का साथ छूटता गया,
और नये दोस्त का हाथ मिलता गया,
इधर देखा, उधर देखा,
हर किसी के चेहरे पर चिलचिलाहट थी,
पर मेरे मन में अनजान लोगों को,
देख एक अलग-सी ही घबराहट थी।
स्कूल में हमेशा कहा जाता की,
तुम्हारा नया दौर शुरू होने वाला है,
ध्यान से राह चुनना क्योंकि,
सब कुछ बदलने वाला है।
कक्षा में पहला ही दिन था,
डर, घबराहट, उत्सुकता से भरा मन था,
स्कूल में आगे बैठने की,
हर किसी में होड़ होती थी,
पर यहाँ का और ही नज़ारा था।
अरे पिछे बैठ जाओ, बड़ा मज़ा आएगा,
सर हो या मैम कुछ नहीं कह पाएगा,
हर किसी की ज़ुबान पर यही नारा था।
सर आए और हम घबराए,
एक-एक कर हमसे रूबरू हुए,
और हम भी बोलना शुरू हुए,
सर बोलने मे मज़ेदार थे,
वो वहाँ के एच.ओ.डी.,
यानी वहाँ के सरदार थे।
अब पढ़ाना शुरू किया और,
आँखों पर दो और,
आँखें यानी चश्मा रख दिया,
पर चश्मे के ऊपर तिरछी नज़र से,
एक बच्चे की और निहारा,
देख उसकी हरकतें दिखा दिया,
उसको दरवाज़े का किनारा।
एेसे ही पल-पल निकलता रहा,
कक्षा में अध्यापकों का,
आना जाना लगता रहा,
धीरे-धीरे नये दोस्त बनते गये,
ग़म हो या खुशी साथ रोते साथ हँसते गये।
काॅलेज का सफर मेरे लिए,
थोड़ा थकावट से भरा था,
इस सफर में हर दिन एक,
नयी सीख व समझ दे जाता है।
कौन बुरा कौन भला,
कौन अपना कौन पराया,
ये वक्त बता जाता है।
दोस्त हजारों मिलते हैं,
पर साथ कोई एक देता है,
बुरा वक्त हो या अच्छा पर,
साथ खड़ा कोई एक ही नज़र आता है।
पर इस दोस्ती के आगे हम,
वह भी भूल जाते हैं कि,
इस संसार में हमें कौन लाया,
किसके कंधे ने हमें बिठाया,
किसकी गोद ने हमें स़ुलाया।
कॉलेज के सफर ने ही,
मुझे बहुत कुछ सिखाया,
कि केवल माँ-बाप ही जो,
बिन कहे साथ निभा जाते हैं
और हमें कोई और मिलते ही,
साथ छोड़ जाते हैं।
अब यही सोचकर चली मैं,
मेरी माँ की कही हुई हिदायत पर,
निकल के इस काॅलेज से चुननी थी,
एक राह सफलता की अपनी समझ पर।
जिससे आने वाला वक्त सुनहरा हो,
चाहे दु:ख, गम मुश्किल से जीवन भरा हो,
चाहूँ यही की आने वाला वक्त सुधर जाए,
और हर वक्त माँ-बाप का साथ नजर आए।