वो एक अज़ीज
वो एक अज़ीज
नाराज़गी जता पाती कभी भी मैं
तो मेरा ये हाल ना होता
क्यूँ रुसवा है अज़िज मुझसे ये
शायद किसी का मुझसे सवाल ना होता
टूटे भरोसे के हाल को बताने
मैंने कलम भी थी उठाई
पर मेरी शख्सियत ना है ऐसी
इसी को देख कलम ने भी मुझसे
नाराज़गी जताई।
ऐसा व्यक्तितव ना है की किसी
को बर्बाद कर दूँ
पर इतनी भी हिम्मत ना है की
खुद को इतनी जल्दी आज़ाद कर दूँ
कलम टूट चुकी है पर नोक का
निशान अभी भी बाकी है
दिल टूट चुका है पर उसकी चोट
का निशान अभी भी बाकी है
लिख सकती तो बहुत कुछ लिख देती
पर अब मेरा वो हाल नहीं
अश्क बहाने का क्या फायदा
अगर उस अज़ीज़ को अपने किए
का कोई मलाल नहीं
रूठ चुकी है मेरी रूह मुझसे की
अब वो, किसी और का होकर
मेरा नहीं रहा
पर मलाल है उसके जाने का
यह सोचकर की अब और
उसके साथ का सहारा नहीं रहा
राह तकती हूं उसके दीदार
होने का बस इंतजार है
और सब कुछ सूना सूना है ,
साथ है तो बस उसकी यादों
का संसार है
अब शायद उसके आने की
वो आस भी नहीं रही
अब ना वो धड़कन है,
साथ अब वो सांस भी नहीं रही
जीने का दस्तूर है दुनिया में
हँसते हँसते ही जीना होगा
जो दुख कभी सह ना सकती थी
अब उसी को पानी बना पीना होगा
करनी ही है अब कोशिश ऐसे
हालात से गुजरने की
अगर मुंह फेर लिया उस
अज़ीज़ ने मुझसे ,
तो आदत डालनी ही है खुद को
खुद से मुकरने की
अब वो बस एक बुरा ख्याल
बनकर मन्न में बैठ गया
पाने की कोशिश पूरी थी उसको
पर अब उसका मन ही
मुझसे थोड़ा ऐंठ गया
था सब कुछ मेरा वो पर अब वो
मेरे ख्यालों का ना पहले
जैसा नवाब रहा
आरज़ू थी उसके साथ जीने की
पर अब ना उसकी चाह है ना
उसके साथ जीने का ख़्वाब रहा
अब वो उस धूल बरी किताब का
बस आखरी पन्ना रह गया
आदत हो जाएगी धीरे धीरे उसके
बिना जीने की ,अब काफी कुछ
मेरा दिल सह गया
भूल जाऊंगी उसे,
बस वक़्त पर भरोसा मेरे साथ है
आस है अब हर और ख़्वाहिश
पूरी होने की, रब का ही तो हाथ है।