कोई नहीं अवतार
कोई नहीं अवतार
सतयुग का दौर गया अब,
आया कलयुग का राज।
खून हुआ सस्ता पानी से,
हाथ आ गया अधम के राज।
बेशर्मी की हद हुई,
गई दान-दया, धर्म और लाज।
महज खिलौना बन कर रह गया,
कानून है आज।
हर महफ़िल में बिछी है चौसर,
दांव लगी नारी है आज।
सहस्त्र है दु:शासन यहाँ पर,
लुट रही चौराहे पर द्रौपदी की लाज।
किसे पुकारे आज बेचारी,
सहस्त्र आपदाओं से घिरी हुई है वो लाचार।
लाज बचाने को द्रौपदी की,
आज कोई नहीं अवतार।
