कोई हमें भी तो, तुम सा बे-मिसाल चाहिए था ।
कोई हमें भी तो, तुम सा बे-मिसाल चाहिए था ।


ना आने से हमारे,
अब भी चुप से बैठे हो तुम,
अमा यार, तुम्हें तो नाराज़ होना चाहिए था ।
अब हमें याद करके,
भला क्यों रो रहे हो तुम,
बिछड़ते वक्त, तुम्हें थोड़ा तो रो लेना चाहिए था ।
कहते हमसे तो यक़ीनन,
चले आते हम ख्वाब में तुम्हारे,
मुदस्सर हैं कि, कल रात तुम्हें सो जाना चाहिए था ।
धागे की डोर,
मोहब्बत ने थमाई थी हाथों में तुम्हारे,
बेशक, तुम्हें कुछ तो सीना-पिरोना चाहिए था ।
बाकियों की तरह,
तुम भी हाल पूछा करते हो हमारा,
पर, तुम्हें तो सब कुछ मालूम होना चाहिए था ।
तुम्हारी खामोशियों को हर दफा,
तोड़ने की जिम्मेदारी सिर्फ हमारी तो नहीं,
तुम्हें भी तो थोड़ा सा गुनगुनाना चाहिए था ।
खामोशियों में हमारी,
फर्क बस इतना सा था कि,
हमें बस तुम और तुम्हें सारा ज़माना चाहिए था ।