कंकाल
कंकाल
बिना रूह के
जिस्म से लिपटे हुए नर कंकाल
खूंखार आँखें
नारी तन को भेदती हुई
हर गली हर नुक्कड़ पर
खोजती सिर्फ नारी तन को
या हो बच्ची या हो युवती
नहीं कोई फ़र्क पड़ता इनको
दबोच लेते हैं चुपके से
ये नर कंकाल रूपी भेड़िए
मिटाते अपनी हवस को
फिर छोड़ देते
अपनी ही तरह बना कर
बिना रूह के नारी कंकाल
यह है नर कंकालों का
मायाजाल, महाजाल,